हिन्दी शायरी
इस नजर ने उस नजर से बात करली,
रहे खामोश मगर फिर भी बात करली,
जब मोहब्बत की फ़िज़ा को खुश पाया,
तो दोनों निगाहों ने रो रो कर बरसात करली।
रहे खामोश मगर फिर भी बात करली,
जब मोहब्बत की फ़िज़ा को खुश पाया,
तो दोनों निगाहों ने रो रो कर बरसात करली।
तुझे देख कर ये जहाँ रंगीन नजर आता है,
तेरे बिना दिल को चैन कहां आता है,
तू ही है मेरे इस दिल की धड़कन,
तेरे बिना ये जहां बेकार नज़र आता है।
तेरे बिना दिल को चैन कहां आता है,
तू ही है मेरे इस दिल की धड़कन,
तेरे बिना ये जहां बेकार नज़र आता है।
उसको रुखसत तो किया था मुझे मालूम न था,
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला,
इक मुसाफिर के सफर जैसी है सब की दुनिया,
कोई जल्दी में कोई देर से जाने वाला।
अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे,
फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे,
ज़िन्दगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे,
अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे।
फलसफा समझो न असरारे सियासत समझो,
जिन्दगी सिर्फ हकीक़त है हकीक़त समझो,
जाने किस दिन हो हवायें भी नीलाम यहाँ,
आज तो साँस भी लेते हो ग़नीमत समझो।
जो तीर भी आता वो खाली नहीं जाता,
मायूस मेरे दिल से सवाली नहीं जाता,
काँटे ही किया करते हैं फूलों की हिफाज़त,
फूलों को बचाने कोई माली नहीं जाता।
अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे,
फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे,
ज़िन्दगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे,
अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे।
कहीं बेहतर है तेरी अमीरी से मुफलिसी मेरी,
चंद सिक्कों की खातिर तूने क्या नहीं खोया है,
माना नहीं है मखमल का बिछौना मेरे पास,
पर तू ये बता कितनी रातें चैन से सोया है।
यार तो आइना हुआ करते हैं यारों के लिए,
तेरा चेहरा तो अभी तक है नकाबों वाला,
मुझसे होगी नहीं दुनिया ये तिजारत दिल की,
मैं करूँ क्या कि मेरा जहान है ख्वाबों वाला।
हमारा ज़िक्र भी अब जुर्म हो गया है वहाँ,
दिनों की बात है महफ़िल की आबरू हम थे,
ख़याल था कि ये पथराव रोक दें चल कर,
जो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे।
जरुरी तो नहीं जीने के लिए सहारा हो,
जरुरी तो नहीं हम जिनके हैं वो हमारा हो,
कुछ कश्तियाँ डूब भी जाया करती हैं,
जरुरी तो नहीं हर कश्ती का किनारा हो।
खामोशी से बिखरना आ गया है,
हमें अब खुद उजड़ना आ गया है,
किसी को बेवफा कहते नहीं हम,
हमें भी अब बदलना आ गया है,
किसी की याद में रोते नहीं हम,
हमें चुपचाप जलना आ गया है,
गुलाबों को तुम अपने पास ही रखो,
हमें कांटों पे चलना आ गया है।
वक़्त नूर को बेनूर कर देता है,
छोटे से जख्म को नासूर कर देता है,
कौन चाहता है अपनों से दूर रहना,
पर वक़्त सबको मजबूर कर देता है।
न जी भर के देखा न कुछ बात की,
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की।
कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं,
कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की।
उजालों की परियाँ नहाने लगीं,
नदी गुनगुनाई ख़यालात की।
मुझ में बसी हुई थी किसी और की महक,
दिल बुझ गया कि रात वो बरहम नहीं मिला।
नज़र में ज़ख़्म-ए-तबस्सुम छुपा छुपा के मिला,
खफा तो था वो मगर मुझ से मुस्कुरा के मिला।
वो हमसफ़र कि मेरे तंज़ पे हंसा था बहुत,
सितम ज़रीफ़ मुझे आइना दिखा के मिला।
दिल की दहलीज पर यादों के दिए रखें हैं,
आज तक हम ने ये दरवाजे खुले रखे हैं।
इस कहानी के वो किरदार कहाँ से लाऊं,
वो ही दरिया है वो ही कच्चे घड़े रखे हैं।
दिन की रोशनी ख्वाबों को सजाने में गुजर गई,
रात की नींद बच्चे को सुलाने मे गुजर गई,
जिस घर मे मेरे नाम की तखती भी नहीं,
सारी उमर उस घर को बनाने में गुजर गई।
फूल इसलिये अच्छे कि खुश्बू का पैगाम देते हैं,
कांटे इसलिये अच्छे कि दामन थाम लेते हैं,
दोस्त इसलिये अच्छे कि वो मुझ पर जान देते हैं,
और दुश्मनों को मैं कैसे खराब कह दूं...
वो ही तो हैं जो महफिल में मेरा नाम लेते हैं।
सरे बाज़ार निकलूं तो आवारगी की तोहमत,
तन्हाई में बैठूं तो इल्जाम-ए-मोहब्बत।
ना शाखों ने पनाह दी,ना हवाओ ने बक्शा,
वो पत्ता आवारा ना बनता तो क्या करता।
अजीब मिठास है मुझ गरीब के खून में भी,
जिसे भी मौका मिलता है वो पीता जरुर है।
सुला दिया माँ ने भूखे बच्चे को ये कहकर,
परियां आएंगी सपनों में रोटियां लेकर।
कुछ दर्द कुछ नमी कुछ बातें जुदाई की,
गुजर गया ख्यालों से तेरी याद का मौसम।
कभी टूटा नहीं दिल से तेरी याद का रिश्ता,
गुफ्तगू हो न हो ख्याल तेरा ही रहता है।
तेरी चाहत में रुसवा यूँ सरे बाज़ार हो गये,
हमने ही दिल खोया और हम ही गुनहगार हो गये।
जमाने भर की रुसवाईयाँ और बेचैन रातें,
ऐ दिल कुछ तो बता ये माजरा क्या है।
वही रखेगा मेरे घर को बलाओं से महफूज,
जो शजर से घोसला गिरने नहीं देता।
हवा खिलाफ थी लेकिन चिराग भी खूब जला,
खुदा भी अपने होने का क्या क्या सबूत देता है।
अब मायूस क्यूँ हो उस की बेवफाई पे फ़राज़,
तुम खुद ही तो कहते थे कि वो सबसे जुदा है।
इन बारिशों से दोस्ती अच्छी नहीं फराज,
कच्चा तेरा मकाँ है कुछ तो ख्याल कर।
क्या गिला करें तेरी मजबूरियों का हम,
तू भी इंसान है कोई खुदा तो नहीं,
मेरा वक़्त जो होता मेरे मुनासिब,
मजबूरिओं को बेच कर तेरा दिल खरीद लेता।
क्या बयान करें तेरी मासूमियत को शायरी में हम,
तू लाख गुनाह कर ले सजा तुझको नहीं मिलनी।
दम तोड़ जाती है हर शिकायत, लबों पे आकर,
जब मासूमियत से वो कहती है, मैंने क्या किया है?
मुझ में ख़ुशबू बसी उसी की है,
जैसे ये ज़िंदगी उसी की है।
वो कहीं आस-पास है मौजूद,
हू-ब-हू ये हँसी उसी की है।
ये मत पूछ के एहसास की शिद्दत क्या थी,
धूप ऐसी थी के साए को भी जलते देखा।
इतनी चाहत के बाद भी तुझे एहसास ना हुआ,
जरा देख तो ले दिल की जगह पत्थर तो नहीं।
अपने होंठों पर सजाना चाहता हूँ,
आ तुझे मैं गुन गुनाना चाहता हूँ।
कोई आँसू तेरे दामन पर गिरा कर,
बूँद को मोती बनाना चाहता हूँ।
कितने परवाने जले राज़ ये पाने के लिए,
शमां जलने के लिए हैं या जलाने के लिए।
किसी को प्यार का मतलब बस इतना सा समझाना,
शमा के पास जाकर के परवाने का जल जाना।
बड़ी तब्दीलियां लाया हूँ
मैं अपने आप में लेकिन,
बस तुमको याद करने की
वो आदत अब भी वाकी है।
झूठ बोलते थे फिर भी कितने सच्चे थे हम,
ये उन दिनों की बात है जब बच्चे थे हम।
सुकून की बात मत कर ऐ दोस्त,
बचपन वाला इतवार अब नहीं आता।
कदम दो चार चलता हूँ,
मुकद्दर रूठ जाता है,
हर इक उम्मीद से
रिश्ता हमारा टूट जाता है,
जमाने को सम्भालूँ गर
तो तुमसे दूर होता हूँ,
तेरा दामन सम्भालूँ तो,
जमाना छूट जाता है।
निगाहों के तक़ाज़े
चैन से मरने नहीं देते,
यहाँ मंज़र ही ऐसे हैं
कि दिल भरने नहीं देते,
क़लम मैं तो उठा कर
जाने कब का रख चुका होता,
मगर तुम हो कि क़िस्सा
मुख़्तसर करने नहीं देते।
जब मुझसे मोहब्बत ही नहीं तो रोकते क्यूँ हो?
तन्हाई में मेरे बारे में सोचते क्यूँ हो?
जब मंजिलें ही जुदा हैं तो जाने दो मुझे...
लौट के कब आओगे ये पूछते क्यूँ हो?
करें हम दुश्मनी किससे, कोई दुश्मन नहीं अपना,
मोहब्बत ने नहीं छोड़ी, जगह दिल में अदावत की।
दुश्मनी का सफ़र एक कदम दो कदम,
तुम भी थक जाओगे, हम भी थक जाएंगे।
चुभता तो बहुत कुछ मुझको भी है तीर की तरह,
मगर ख़ामोश रहता हूँ, अपनी तक़दीर की तरह।
ऊपर वाले ने कितने लोगो की तक़दीर सवारी है,
काश वो एक बार मुझे भी कह दे कि आज तेरी बारी है।
तमन्नाओ की महफ़िल तो हर कोई सजाता है,
पूरी उसकी होती है जो तकदीर लेकर आता है।
कभी जो मुझे हक मिला अपनी तकदीर लिखने का
कसम खुदा की तेरा नाम लिख कर कलम तोड दूंगा।
अफ़सोस तो है तुम्हारे बदल जाने का मगर,
तुम्हारी कुछ बातों ने मुझे जीना सिखा दिया।
रखते थे होठों पे उंगलियां जो मरने के नाम से,
अफसोस वही लोग मेरे दिल के कातिल निकले।
गम नही कि तुम बेवफा निकली,
मगर अफ़सोस इस बात का है,
वो सब लोग सच निकले,
जिनसे मैं तेरे लिए लड़ा था।
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नमसकार दोस्तों 🙂